भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 132 वर्ष (1885-2017)
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 132 वर्ष (1885-2017)
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस,
अधिकतर कांग्रेस के नाम से प्रख्यात हैं। कांग्रेस
की स्थापना ब्रिटिश राज में 1885 में हुई थी; इसके संस्थापकों में ए ओ ह्यूम (थियिसोफिकल
सोसाइटी के प्रमुख सदस्य), दादा भाई नौरोजी और दिनशा वाचा शामिल थे। 19वी सदी के आखिर में और शुरूआती से लेकर मध्य 20वी सदी में, कांग्रेस भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में,
अपने 1.5 करोड़ से अधिक सदस्यों और 7 करोड़ से अधिक प्रतिभागियों के साथ,
ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन विरोध में एक केन्द्रीय भागीदार बनी थी।
1947 में आजादी के बाद,
कांग्रेस भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टी बन
गई। आज़ादी से लेकर 2016 तक, 16 आम चुनावों में से,
कांग्रेस ने 6 में पूर्ण बहुमत जीता हैं और 4 में सत्तारूढ़ गठबंधन का नेतृत्व किया;
अतः, कुल 49 वर्षों तक वह केन्द्र सरकार का हिस्सा रही। भारत
में, कांग्रेस के सात प्रधानमंत्री रह चुके हैं;
पहले जवाहरलाल नेहरू (1947-1965)
थे और हाल ही में मनमोहन सिंह (2004-2014)
थे।
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का इतिहास दो विभिन्न काल से गुज़रता हैं।
1.
आज़ादी
से पूर्व - जब यह पार्टी स्वतंत्रता अभियान की संयुक्त संगठन थी।
2. आज़ादी के बाद - जब यह पार्टी भारतीय राजनीति में प्रमुख स्थान पर विद्यमान रही हैं।
2. आज़ादी के बाद - जब यह पार्टी भारतीय राजनीति में प्रमुख स्थान पर विद्यमान रही हैं।
स्वतन्त्रता संग्राम
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना 72 प्रतिनिधियों की उपस्थिति के साथ 28 दिसम्बर 1885
को बॉम्बे के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में हुई थी। अपने शुरुआती दिनों
में काँग्रेस का दृष्टिकोण एक कुलीन वर्ग की संस्था का था। काँग्रेस में स्वराज का लक्ष्य सबसे पहले बाल गंगाधर तिलक ने अपनाया था। 1907
में काँग्रेस में दो दल बन चुके थे - गरम दल एवं नरम दल। गरम दल का
नेतृत्व बाल
गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय एवं बिपिन
चंद्र पाल (जिन्हें
लाल-बाल-पाल भी कहा जाता है) कर रहे थे। नरम दल का नेतृत्व गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोजशाह मेहता एवं दादा भाई नौरोजी कर रहे थे। गरम दल पूर्ण
स्वराज की माँग कर रहा था परन्तु नरम दल ब्रिटिश राज में स्वशासन चाहता था। प्रथम विश्व युद्ध के छिड़ने के बाद सन् 1916
की लखनऊ बैठक में दोनों दल फिर एक हो गये और होम रूल आंदोलन की शुरुआत हुई जिसके तहत ब्रिटिश राज में भारत के लिये अधिराजकिय पद(अर्थात डोमिनियन स्टेटस) की माँग की गयी। कांग्रेस ने गठन
के बाद इसने भारत के मध्यम वर्ग विषेषतः बुद्धिवादियों को भारी संख्या में अपनी और
आकर्षित किया। ये बुद्धिजीवी पश्चिमी शिक्षा, संस्कृति और यूरोप के समसामयिक सिद्धान्तवादियों के
विचारों से प्रभावित थे। वस्तुतः ध्यान देने की महत्वपूर्ण बात यह है कि अपनी
प्रगति के हर चरण पर राष्ट्रीय आन्दोलन का नेतृत्व बृद्धजीवियों के द्वारा ही हुआ
है। अपने उदारवादी चरण (1885-1905) में इसका नेतृत्व दादाभाई
नौरोजी, डब्ल्यू.सी. बनर्जी, डी.ई.
वाचा, एम.जी. रानाडे, आर.सी. दत्त,
आर. एन. मुधोलकर, फिरोजषाह मेहता, जी.के. गोखले, के.टी. तेलंग, एस.एन.
बनर्जी प्रभृति उच्च कोटि के उदारवादी बुद्धिजीवियों ने किया था। अपने उग्रवादी
दौर में कांग्रेस का नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक, विपिनचन्द्र
पाल, लाला लाजपत राय तथा अन्य अनेक वैसे नेताओं द्वारा किया
गया जिनमें विद्वता के साथ-साथ अपने उद्देष्यों के लिए सर्वस्व बलिदान कर देने की
भावना थी। ये महापुरूष चाहे वे उदारवादी हों या उग्रवादी, समसामयिक
यूरोपीय आर्थिक, राजनीतिक, सामाजिक तथा
दार्षनिक सिद्धान्तों में पूर्णतः निष्णात थे। इसके बाद भारतीय राजनीतिक क्षितिज
पर एक सर्वाध्कि शक्तिषाली और प्रभावपूर्ण व्यक्तित्व का उदय हुआ जिनका नाम
मोहनदास करमचन्द गांधी था। यह उन्हीं का प्रयास था जिससे भारत ब्रिटिष
साम्राज्यवाद के जूआ (परतंत्रता) से मुक्त होकर एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में
अवतरित हुआ।
परन्तु 1915
में गाँधी जी के भारत आगमन के साथ काँग्रेस में बहुत बड़ा बदलाव आया। चम्पारन एवं
खेड़ा में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को जन समर्थन से अपनी पहली सफलता मिली। महात्मा गांधी के भारतीय स्वतंत्रता के इस संघर्ष में ‘‘सत्य और अहिंसा’’ ही
उनके अस्त्र और शस्त्र थे। उनका विष्वास स्वदेषी आन्दोलन में था जिसे ‘‘चरखा द्वारा आजादी’’ की संज्ञा दी जाती है। गांधीजी
के काल में अनेक लोकप्रिय नेता उनके विष्वासी अनुयायी बन गये जिनमें पंडित मोती
लाल नेहरू, सरदार वल्लभ भाई पटेल, सरोजनी
नाथडू, डा. राजेन्द्र प्रसाद, जेबी.
कृपलानी, अब्दुल कलाम आजाद, खान अब्दुल
गफार खान और राजगोपालाचारी प्रमुख थे। 1919 में जालियाँवाला बाग हत्याकांड के पश्चात गान्धी काँग्रेस के महासचिव बने। उनके मार्गदर्शन में
काँग्रेस कुलीन वर्गीय संस्था से बदलकर एक जनसमुदाय संस्था बन गयी। तत्पश्चात्
राष्ट्रीय नेताओं की एक नयी पीढ़ी आयी जिसमें सरदार वल्लभभाई पटेल, जवाहरलाल नेहरू,
डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, महादेव देसाई एवं सुभाष चंद्र बोस आदि शामिल थे। गान्धी के नेतृत्व में प्रदेश काँग्रेस कमेटियों का
निर्माण हुआ, काँग्रेस में सभी पदों के लिये चुनाव की
शुरुआत हुई एवं कार्यवाहियों के लिये भारतीय भाषाओं का प्रयोग शुरू हुआ। काँग्रेस
ने कई प्रान्तों में सामाजिक समस्याओं को हटाने के प्रयत्न किये जिनमें छुआछूत,
पर्दाप्रथा एवं मद्यपान आदि शामिल थे। गांधीजी के सबसे प्रिय और विष्वासी अनुयाई
पंडित जवाहरलाल नेहरू हुए। वे 15 अगस्त, 1947 को स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री
बने। सर्वप्रथम उन्होंने जिन्ना की सीधी कार्रवाई के कारण उत्पन्न दंगों का
निराकरण किया।
स्वतन्त्र भारत
स्वतंत्रता प्राप्ति के पष्चात भी इसका
संघर्ष चलता रहा तथा यह अपने लक्ष्य में सफल भी हुई। एक सार्वभौम लोकतांत्रित
सरकार की स्थापना, धर्मनिरपेक्ष, समाजवाद जैसे उच्च विचार हमेषा कांग्रेस की नीतियों के केन्द्र में रहे। पंडित
जवाहर लाल नेहरू ने विशेष आर्थिक सुधार नीति पर अमल के लिए योजना आयोग की स्थापना
की। इसके अन्तर्गत पंचवर्षीय योजनाओं का प्रारम्भ हुआ। उनका विश्वास बड़े और कुटीर
उद्योगों के उत्थान के प्रति था। वे गुट निरपेक्षता की नीति के जन्मदाता थे। पंडित
नेहरू का विश्वास संयुक्त राष्ट्रसंघ के सिद्धान्तों में था और वे चाहते थे कि विश्व
के तनाव का निराकरण इसी संगठन के द्वारा हो। 27 मई,
1964 को पंडित जवाहरलाल नेहरू की मृत्यु के बाद कांग्रेस संसदीय दल ने आम सहमति के द्वारा
लालबहादुर शास्त्री को भारत का प्रधानमंत्री पद प्रदान करने का निर्णय लिया गया।
चूकि वे
पंडित नेहरू के मंत्रिमंडल के सबसे अनुभवी मंत्री थे इसलिए उनका पहला ध्यान दल के
भीतरी द्वंद्वों को दूर करने की ओर गया। वे भारत की सेना और किसानों की दयनीय
स्थिति से अवगत थे, जिसे उन्होंने शक्तिषाली
बनाने का प्रयास किया। इसलिए उन्होंने ‘‘जय जवान-जय किसान’’
का नारा दिया। उन्होंने पाकिस्तान को सितम्बर, 1965 में पूर्णतः पराजित किया जब पाकिस्तान ने कष्मीर, गुजरात
और राजस्थान के सीमावर्ती इलाकों को सेना का प्रयोग कर अधीन करने का प्रयास किया।
भारतीय सरकार और भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का दूसरा शक्तिषाली स्तम्भ श्रीमती
इन्दिरा गांधी बनीं।
नेहरू जी
आदर्षवादी और स्वप्नद्रष्टा थे, परन्तु श्रीमती इन्दिरा गांधी अधिक निर्णायक और व्यवहारवादी थीं । जब वे
भारत की प्रधानमंत्री बनी तो उन्होंने 1971 के पाकिस्तानी
युद्ध के संदर्भ में बांग्लादेष का निर्माण कर पाकिस्तान को एक बहुत ही शक्तिहीन
देष बना दिया। उन्होंने सोवियत संघ के साथ अपने संबंध मजबूत बनाने के लिए 1971
में एक संधि की। उन्होंने ‘‘गरीबी हटाओ’’
का एक बहुत ही सुन्दर एवं कारगर नारा दिया जिससे भारत की गरीबी को
दूर किया जा सके। उन्होंने 1974 में भारत का पहला आणविक
परीक्षण करवाया तथा अमृतसर में सेना भेजकर पंजाब के उग्रवाद को कुचल दिया। वे हरित क्रान्ति की भी जन्मदाता थीं। वास्तव
में वे स्वतंत्रता के बाद की सबसे अधिक शक्तिषाली प्रधानमंत्री थीं।
श्रीमती
इन्दिरा गांधी के पष्चात् उनके ज्येष्ठ पुत्र श्री राजीव गांधी भारत के छठे प्रधानमंत्री
बने। राजनीति में उनकी आकृति पूर्णतः साफ-सुथरी थी इसलिए राष्ट्रीय और
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति मे उन्हें ‘‘मि. क्लीन’’ और ‘‘आदर्ष
पुरूष’’ की संज्ञा दी जाती है। उन्होंने भारतीय सेनाओं को
आधुनिक बनाया तथा राजेष पायलट, आर. कुमार मंगलम और माधव राव
सिन्धिया जैसे नवयुवकों को राजनीति मे आने के लिए उत्प्रेरित किया। उन्होंने
भारतीय उद्योग धंधों और ग्रामीण खेती को महत्वपूर्ण प्रोत्साहन दिया। उन्होंने
आतंकवाद तथा विघटनकारी प्रवृतियों को शक्तिषाली चुनौती के रूप में देखा। उनकी ‘‘इक्कीसवीं सदी की परिकल्पना’’ मातृभूमि के उत्थान के
लिए बड़ा ही सुन्दर सपना थी। उनकी विदेष नीति उच्चस्तरीय थी और वे विष्व के सभी
देषों के साथ भारत का संबंध मधुर बनाना चाहते थे। उन्होंने श्रीलंका सरकार के साथ 27
जुलाई, 1987 को एक संधि की जिससे कि उप
महाद्वीप में शान्ति और स्थिरता की स्थापना हो सके। राजीव गांधी और तत्कालीन
कांग्रेस पार्टी की सबसे बड़ी उपलब्धि ‘‘इक्कीसवीं सदी की
परिकल्पना’’ थी। उनका सपना पंचायती-राज संस्थाओं को
शक्तिषाली बनाना था और वे महिलाओं को 30 प्रतिषत आरक्षण देना
चाहते थे तथा इसे वे व्यावहारिक रूप मे देखना चाहते थे। इसके लिए वे भारतीय
संविधान में संषोधन करना चाहते थे परन्तु विरोधी दलो का सहयोग नहीं मिलने के कारण
वे असफल हो गये। उन्होंने ‘‘जवाहर रोजगार योजना’’ का प्रारम्भ किया जिससे कि
गांव के प्रत्येक गरीब परिवार के एक सदस्य को 50-100 दिनों
का काम मिल सके। वे भारत की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक रूप
रेखा को इक्कीसवीं सदी के अनुकूल पूर्णतः घुलना चाहते थे। वे समाज के हर क्षेत्र
में नवयुवकों को आगे आने का अवसर प्रदान करना चाहते थे। उन्होंने नागरिकों के
मतदान की आयु 21 वर्ष से घटाकर 18 वर्ष
कर दी। राजीव गांधी ने देष को बार-बार याद कराया कि देष को इक्कीसवीं सदी के लिए
तैयार करना है और इसके लिए उन्होंने कुछ महत्वपूर्ण कदम भी उठाए। उन्होंने आधुनिक
तकनीक के विकास के साथ ही कम्प्यूटर कार्यक्रम को महत्व दिया। उन्होंने उद्योग
धंधे पर कम नियंत्रण रखने का विचार रखा। 1984 से 1989
के अपने कार्यकाल में आर्थिक विकास दर जो 3 प्रतिषत
से 3.5 प्रतिषत थी, बढ़कर 5.5 प्रतिषत हो गया। वास्तव में राजीव गांधी की भारत को एक महाषक्तिषाली राज्य
बनाने की इच्छा निष्चितरूप से सराहनीय है। 1989 का निर्वाचन
विभिन्न कारणों से कांग्रेस पार्टी के विरूद्ध चला गया परन्तु वी.पी. सिंह और
चन्द्रषेखर की गैर-कांग्रेसी सरकारें अधिक दिनों तक नहीं टिक सकी, इसीलिए एक बार पुनः मई, 1991 में लोकसभा के चुनाव की
घोषणा हो गई।
राजीव गांधी
के अथक प्रयास और कांग्रेस के लिए दिये गये बलिदान के कारण भारतीय राष्ट्रीय
कांग्रेस के पी.वी. नरसिंहराव भारत के नवें प्रधानमंत्री बने। कांग्रेस को जे.एम.एम.
(झारखण्ड मुक्ति मोर्चा) तथा निर्दलियों का बाहरी समर्थन प्राप्त था। नरसिंहराव ने
आर्थिक सुधारों को लागू किया तथा उनके शासनकाल में भारतीय इतिहास में सर्वाधिक
आर्थिक विकास हुआ।
1996 के निर्वाचन में कांग्रेस
को पराजय का मुंह देखना पड़ा परन्तु उसके बाद की तीनों सरकारें अटल बिहारी वाजपेयी
की सरकार, एच. डी. देवगौड़ा की सरकार और आई.के. गुजराल की
सरकार अस्थिर सिद्ध हुई। अतः एक बार पुनः 1998 में आम चुनाव
की घोषणा हो गई। इस बार भारतीय जनता पार्टी 24 दलों के
समर्थन से सत्ता में आई और कांग्रेस को पूरे छह वर्षों तक सत्ता से बाहर रहना
पड़ा। परन्तु 2004 के संसदीय चुनाव में कांग्रेस के नेतृत्व
में (यू.पी.ए.) संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन को पुनः सत्ता प्राप्त करने में सफलता
मिली। यह सब कुछ श्रीमती सोनिया गांधी, जो भारतीय राष्ट्रीय
कांग्रेस की अध्यक्ष हैं, के अथक प्रयास के कारण सम्भव हुआ।
तत्पष्चात
श्रीमती सोनिया गांधी को भारत का प्रधनमंत्री बनने का सुअवसर प्राप्त हुआ परन्तु
उन्होंने विनम्रता के साथ उस पद को स्वीकार करने से इनकार कर दिया और भारत के एक
जाने-माने अर्थषास्त्री डा. मनमोहन सिंह को यह पद प्रदान किया। श्रीमती सोनिया
गांधी को यू.पी.ए. (संयुक्त प्रगतिषील गठबंधन) के अध्यक्ष का पद स्वीकार करने के
लिए मना लिया गया। डा. मनमोहन सिंह और श्रीमती सोनिया गांधी (2004 से अब तक) के कार्यकाल में कांग्रेस
सरकार ने भारतीय समाज के विभिन्न क्षेत्रों में निम्नलिखित उपलब्धियां प्राप्त की
है। उनकी सरकार के द्वारा राष्ट्रीय सलाहकार परिषद को जन्म दिया गया। इसका काम
सरकार को नीति-निर्धारण में सहायता देना था। सूचना के अधिकार अधिनियम को अक्टूबर,
2005 में संयुक्त प्रगतिषील गठबंधन सरकार के द्वारा क्रियान्वित
किया गया। यह अधिनियम मुख्यतः श्रीमती सोनिया गांधी के शक्तिषाली समर्थन के कारण
सम्भव हो सका। वास्तव में वोट देने के अधिकार के बाद सूचना का अधिकार सबसे अधिक
सामयिक और महत्वपूर्ण कदम है, जिसने विधयन, भारत की प्रजातांत्रिक पद्धति और उत्तरदायित्व सुनिष्चित करने की व्यवस्था
को सर्वाधिक शक्तिषाली बना दिया। संयुक्त प्रगतिषील गठबंधन सरकार की दूसरी
ऐतिहासिक उपलब्धि नरेगा (अब मनरेगा) के क्रियान्वयन में है। इस संयुक्त प्रगतिषील
गठबंधन सरकार ने एक नई योजना का प्रारम्भ किया जिससे ग्रामीण भारत के स्वास्थ्य
में सुधार हो सके। इसका नाम 2005 का ‘‘राष्ट्रीय
ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन’’ है। इसका मुख्य दायित्व गांवों के
प्राथमिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना है जिसका कार्य समाज को प्रशिक्षित करना है। वर्तमान
काल में संयुक्त ‘‘प्रगतिषील गठबंधन’’ सरकार
की सबसे बड़ी उपलब्धि खाद्य सुरक्षा अधिनियम, 2013 को
क्रियान्वित करना है। इस अधिनियम का मुख्य उद्देष्य यह देखना है कि कोई भी व्यक्ति
भुखमरी का षिकार न बने। इसीलिए इस अधिनियम में व्यवस्था है कि भारत की 67 प्रतिषत जनसंख्या को अत्यन्त ही कम कीमत पर खाद्यान्न प्राप्त कराया जाए। वास्तव
में यह अधिनियम श्रीमती सोनिया गांधी के मस्तिष्क की उपज है जो चाहती हैं कि भारत
का कोई भी व्यक्ति भुखमरी का शिकार न हो।
भारतीय
राष्ट्रीय कांग्रेस का विश्वास भ्रष्टाचार मुक्त समाज में है। इसलिए उसने अपने
जन्मकाल से ही समाज के किसी भी क्षेत्र में उत्पन्न भ्रष्टाचार का विरोध किया है।
इस सिद्धान्त के प्रयोग का नया उदाहरण भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उपाध्यक्ष
राहुल गांधी के दृढ़ निष्चय में भी झलकता है जब उन्होंने सरकार के उस प्रस्ताव का
कट्टरता से विरोध किया जब उसने न्ययालय द्वारा 2 वर्ष से अधिक समय की सजा पाये हुए नेताओं को एक अध्यादेष लाकर
बचाने का प्रयास किया। श्री राहुल गांधी के कठोर विरोध के कारण सरकार के पास इस
विचार को त्यागने के अतिरिक्त कोई दूसरा विकल्प नहीं था। अतः यह स्पष्ट है कि श्री
राहुल गांधी एक युवा और सक्रिय नेता, कांग्रेस पार्टी की
आकृति के साथ-साथ सरकार का एक ऐसे औजार के रूप में परिवर्तित करना चाहते हैं जो
भारत में फैले भ्रष्टाचार को पूरी तरह कुचल दे।
दस वर्ष
सत्ता मे रहने के पष्चात सत्ता विरोधी लहर तथा भारतीय जनता पार्टी के आक्रामक एवं
भ्रामक चुनावी प्रचार ने मई, 2014 में कांग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया। हालांकि भाजपा के ‘‘अच्छे दिन’’ के सपनों की सच्चाई शीघ्र ही भारत की
जनता के सामने आ गई। भाजपा ने शीघ्र ही अपना असली रंग दिखाना प्रारम्भ कर दिया। ‘‘भूमि सुधार बिल’’ ने यह प्रमाणित कर दिया कि भाजपा
किसान विरोधी और कार्पोरेट सेक्टर एवं पूजीवाद की समर्थक है। कांग्रेस नेतृत्व विशेशकर
राहुल गांधी ने इसका पुरजोर विरोध किया तथा मोदी सरकार को बैकपुफट पर जाने को
मजबूर कर दिया। इस घटना ने पुनः यह प्रमाणित कर दिया कि कांग्रेस गरीब, दलित तथा पिछड़ों की कितनी बड़ी समर्थक है। सत्ता में आने के तुरंत बाद
भाजपा ने अपने फॅसिस्ट विचरो को देष पर जबरन लादने की मुहिम तेज कर दी।
प्रधानमन्त्रियों की सूची
क्र०
|
प्रधानमन्त्री
|
वर्ष
|
अवधि
|
1
|
जवाहरलाल नेहरू
|
1947–64
|
17 वर्ष
|
2
|
गुलज़ारीलाल नन्दा
|
मई-जून 1964
|
26 दिन
|
3
|
लाल बहादुर शास्त्री
|
1964–66
|
2 वर्ष
|
4
|
इन्दिरा गांधी
|
1966–77, 1980–84
|
16 वर्ष
|
5
|
राजीव गांधी
|
1984–89
|
5 वर्ष
|
6
|
पी॰ वी॰ नरसिम्हा राव
|
1991–96
|
5 वर्ष
|
7
|
मनमोहन सिंह
|
2004–14
|
10 वर्ष
|
सार
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस (जैसा कि इतिहासकार बिपन चन्द कहते हैं)
सिर्फ एक राजनीतिक दल ही नहीं, बल्कि एक आंदोलन है जिसने विभिन्न विचारों,
ज्ञान तथा व्यक्तियों को अपने में समाहित किया। इसने विभिन्न
मतान्तरों को भी अपने साथ लिया तथा विभिन्नता में एकता को स्थापित किया। वर्षों
इसने स्वतंत्रता संघर्ष को संपूर्णता में निदेषित तथा संचालित किया।
हिन्दू-पुरातनपंथियों
द्वारा लेखकों एवं बुद्धिजीवियों पर हमले होने लगे, हत्या भी हुई। प्रधानमंत्री मोदी द्वारा इसका कड़े शब्दों में
विरोध नहीं किया गया तथा असहिष्णुता के बढ़ते माहौल को रोकने का सक्षम उपाय नहीं
करना, कांग्रेस को रास नहीं आया। कांग्रेस नेतृत्व ने पुनः
पूरे देष में इन दुष्कृत्यों को रोकने के लिए मुहिम चलाई। जनता का विष्वास जीतने
में एक बार फिर कांग्रेस सफल हुई। बिहार के विधान सभा चुनावों में भाजपा का पत्ता
साफ हो गया तथा कांग्रेस के बढ़े हुए जनाधार ने कांग्रेस की विष्वसनीयता पर पुनः
अपनी मुहर लगा दी। बिहार चुनाव में कांग्रेस की जीत तथा बढ़े हुए वोट प्रतिषत ने
राहुल गांधी की लोकप्रियता एवं कांग्रेस की नीतियों को सही साबित किया। कांग्रेस
की विजय में उपाध्यक्ष राहुल गांधी के दिषा निर्देषों तथ बिहार कांग्रेस के
अध्यक्ष डा. अषोक चैधरी एवं स्थानीय कांग्रेस कार्यकत्र्ताओं तथा रणनीतिकारों की
भी अहम भूमिका रही। आषा की जाती है कि 2019 के संसदीय चुनाव
में कांग्रेस पुनः पुरजोर वापसी करेगी तथा राष्ट्र के गर्व को पुनस्र्थापित कर
भारतीय नागरिकों की सेवा करेगी।
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