डिजिटल सुरक्षा के बिना डिजिटल इंडिया हो सकता है क्या ?
‘‘जब मैं वहां खड़ा था तब भी मैंने जीएसटी का समर्थन किया और जब मैं यहां बैठा हूं (ट्रेजरी बेंच और विपक्ष के बैंचों का हवाला देते हुए) तब भी मैं जीएसटी का समर्थन करता हूं। जब मैं वहां था तब मैंने आधार का समर्थन किया और जब मैं यहां हूं तो मैंने आधार का समर्थन किया। मैंने वहां भूमि अधिग्रहण विधेयक का समर्थन किया और मैं यहां भी भूमि अधिग्रहण विधेयक का समर्थन करता हूं। इन तीनों मामलों पर, विपक्ष के पूर्व नेता और उनकी पार्टी ने अपना मन बदल लिया ज बवे यहां से वहां गये। इसलिए, मुझे सदन के नेता से मेरी बौद्धिक अखंडता के प्रमाण पत्रों की आवश्यकता नहीं है।’’
2016 में कांग्रेस पार्टी की तरफ से राज्य सभा में आधार विधेयक पर चर्चा करते हुए ये बातें पूर्व केंद्रीय मंत्री जयराम रमेश ने कही थीं। 2012 में भारत के तत्त्कालीन प्रधान मंत्री डॉ मनमोहन सिंह ने इससे पहले कहा था, ‘‘हमारी सरकार प्रशासन में पारदर्शिता लाने और बेईमानी पर लगाम लगाने के लिये नयी तकनीक का उपयोग करना चाहती है। आधार इस दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।’’ कांग्रेस पार्टी भी आधार पर अपने रुख पर कायम रही। हमेशा से ही हमारा मानना रहा है कि यह सब्सिडी को बेहतर ढंग से लक्षित करने हेतु महत्वपूर्ण साधन है। हम हमेशा इस पर कायम रहे कि यह पहचान का प्रमाण है, इसका यह कतई मतलब नहीं है कि यदि किसी के पास आधार संख्या है तो वह सब्सिडी का हकदार है।
लेकिन, नरेंद्र मोदी सरकार आंकड़ों की सुरक्षा या हमारे गोपनीयता कानून की मजबूती सुनिश्चित किये बिना अब लगभग हर सरकारी सेवाओं को आधार से जोड़ने का प्रयास कर रही है। ऐसी कई मीडिया रिपोर्टें हैं, जो बताती हैं कि भारतीय नागरिकों का आधार डेटा एक्सेंचर और माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों के पास है। सेंटर फॉर इंटरनेट सोसाइटी ने एक ताजा रिपोर्ट में कहा कि लगभग 13.5 करोड़ आधार डेटा को जोखिम में डाला गया। जबकि, ऐसा प्रतीत होता है कि प्रधानमंत्री हर किसी को आधार संख्या लेने पर मजबूर करने की जल्दी में हैं, उनकी सरकार जरूरी सुरक्षा उपायों को प्रदान करने में नाकाम रही है ताकि यह सुनिश्चित हो सके की आंकड़ों की सुरक्षा से कोई समझौता नहीं होगा और दोषियों को दंडित किया जाएगा।
नया आधार कानून राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर व्यापक शक्तियां भी देता है। यदि हम भारतीय टेलीग्राफ अधिनियम, 1885 को देखें तो इसमें राष्ट्रीय सुरक्षा शब्द का उपयोग नहीं किया गया है। ऐसा इसलिए हो सकता है क्योंकि ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ शब्द की व्यापक प्रकृति के कारण इसका दुरुपयोग किया जा सकता है। और हमने देखा है कि मौजूदा सरकार ने ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ की आड़ में नागरिकों पर किस प्रकार से हमला किया है। बजाय इसके हमें ‘सार्वजनिक आपातकाल’ और ‘सार्वजनिक सुरक्षा’ शब्द का इस्तेमाल करना चाहिए, जो मौजूदा कानूनों में मौजूद हैं।
कांग्रेस हमेशा से ही आधार की अवधारणा के पीछे मजबूती से खड़ी रही है, और 2010 से लेकर हम इस ऐतिहासिक कानून को बेहतर ढंग से सुधारने के लिए चर्चा करने के लिए तैयार थे। हम लगातार अपने रुख पर कायम रहे और इस मुद्दे पर क्षुद्र राजनीति को हमारे रुख के आड़े नहीं आने दिया। इसके उलट, भाजपा के बारे में ऐसा नहीं कहा जा सकता है। मूर्खतापूर्ण और घटिया राजनीति में उलझे रहना और उलट-पुलट नीतियों के कारण श्री नरेन्द्र मोदी इस बात के लिये जाने जाते हैं कि उन्होंने शुरू में आधार को ‘राजनीतिक नौटंकी’ के रूप में खारिज कर दिया था। लेकिन, जैसे ही उनकी पार्टी की सरकार बनी मोदी जी आधार के पक्ष में ट्वीट करके दूसरा ही राग अलापने लगे।
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