किसानों हितों के खिलाफ काम कर रही है ‘सूट बूट की सरकार‘

मध्य प्रदेश के सेहोर जिले में गंभीर वित्तीय बाधाओं ने एक किसान को अपनी दो बेटियों से मदद लेने के लिए मजबूर किया क्योंकि परिवार के पास बैल खरीदने के लिए पैसा नहीं था। बसंतपुर पांगरी गांव के रहनेवाले सरदार कहला ने दावा किया कि उनके पास खेतों के लिए बैल खरीदने के लिए पर्याप्त पैसा नहीं है। "मेरे पास फसलने के लिए बैल खरीदने या लेने का पर्याप्त पैसा नहीं है। उन्होंने कहा, मेरी दोनों बेटियों ने वित्तीय संकट के कारण अपनी पढ़ाई छोड़ दी थी। जिला जनसंपर्क अधिकारी (डीपीआरओ) आशीष शर्मा ने कहा कि प्रशासन इस मामले पर विचार कर रहा है। "किसान को निर्देश दिया गया है कि वह ऐसी गतिविधियों के लिए बच्चों का इस्तेमाल न करे। उन्होंने सरकारी योजनाओं में जो भी मदद की हो, प्रशासन उस पर विचार कर रहा है। " मगर यह किस्से तो आम हो गये है। 

एक किसान कौन है? एक व्यक्ति जो भोजन के लिए जीवित बढ़ती फसल बना देता है? लेकिन, एक किसान कौन है? क्या कौशल, योग्यता, लाइसेंस, भूमि खिताब, औपचारिक अनुबंध एक व्यक्ति के पास होना चाहिए? "किसान" पर विचार करके हम समझते हैं कि वह कैसा दिखता है, वह कहां से है, यहां तक कि फसलों के प्रकार, जो कि स्वीकार्य हैं उससे पता होगे - लेकिन वो इससे बहुत अधिक महत्वपूर्ण हैं।

केन्द्र की पूर्ववर्ती कांग्रेसनीत संप्रग सरकार ने तमाम मुश्किलों के बावजूद किसानों का 70 हजार करोड़ रपये कर्ज माफ किया था। जब केन्द्र में संप्रग की सरकार थी, तब कच्चे तेल के दाम 140 रपये प्रति बैरल थे। तत्कालीन सरकार के पास पैसे नहीं थे, लेकिन उसके बावजूद हमने उनका कर्ज माफ किया। जब उस वक्त के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने किसानों का कर्ज माफ करने की घोषणा की तो भाजपा के लोगों ने संसद में कहा कि सरकार आखिर इतना धन कहां से लाएगी। यह कैसे सम्भव होगा, लेकिन इसके बावजूद पूर्ववर्ती कांग्रेसनीत संप्रग सरकार ने किसानों के भले के लिये उनका कर्ज माफ किया, जबकि मोदी सरकार किसानों की उपेक्षा कर रही है। मोदी सरकार द्वारा लगातार उपेक्षा, किसान कल्याण  की जरूरी योजनाओं में कटौती तथा दुर्भावना से कई राज्यों को 'आपदा राहत' प्रदान नहीं किए जाने से किसानों में घोर निराशा है जिसके चलते कृषि निर्यात में जबरदस्त कमी आई  है।  
अकेले 2015 में 12 हजार 602 किसानों और  खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की जबकि 2014 में 12 हजार 360 किसानों और खेत मजूदरों  ने आत्महत्या की थी। विशेषज्ञों का अनुमान है कि 2016 में यह संख्या के 14 हजार तक पहुंच गई होगी। मोदी सरकार ने चंद पूंजीपति मित्रों का 1,54,000 करोड़ रुपए का कर्ज माफ किया है। भाजपा  के शासनकाल में देश के कृषि निर्यात में जबरदस्त गिरावट भी आई है। यह भाजपा का  निकम्मापन है और वही कांग्रेस के दौर में कृषि निर्यात 32,955 लाख डॉलर पहुंच  गया था लेकिन मोदी सरकार के कार्यकाल में यह घटकर 13,380 लाख डॉलर के स्तर पर  पहुंच गया है। पिछले 3 सालों के दौरान देश के कृषि निर्यात में हर साल गिरावट आती रही  जिसे रोकने के सरकार ने कोई प्रयास नहीं किए।  

 गैरभाजपा शासित राज्यों के किसानों के साथ इस दौरान  ज्यादा भेदभाव हुआ है। पिछले 3 साल में लगातार सूखे और अकाल के बावजूद मोदी सरकार  ने दुर्भावना से काम किया और  गैरभाजपा शासित राज्यों को आपदा राहत  प्रदान करने में  कटौती की।  अन्नदाता की हो रही लगातार उपेक्षा भारत को खाद्यान सुरक्षा को दबा देगी और कई नई विकट समस्या को जन्म देगी।  

टिप्पणियाँ

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गाँधी जी के बढ़ते कदम, तिलमिलाती हुई भाजपा

गुजरात चुनाव - राहुल गाँधी के सामने अमित शाह और मोदी की हालत यूँ ही पतली नहीं है

मोदी सरकार के 3 वर्ष ओर घोटालों की लम्बी होती फ़ेहरिस्त

भारतीय जनता पार्टी के वादे और उनके इरादे

भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के 132 वर्ष (1885-2017)

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का फतेहपुर वाला 'श्मशान वाले' बयान निंदनीय

MCD चुनाव 2017 के मायने

राहुल गांधी जी के सोमनाथ मंदिर मे जाने से बीजेपी मे क्यूँ होने लगी टेंशन ?