जीएसटी और हमारी काँग्रेस की मांगे
हम कहते है जीएसटी में बुराई नहीं है, किन्तु इसके मौजूदा प्रावधानों में से कुछ में संशोधन किए जाने की जरूरत है। हम जीएसटी के विरोध में नहीं हैं, लेकिन इसको लागू करने से पहले व्यावहारिक सोच के साथ यह समझने की जरूरत है कि इससे व्यापारियों के साथ ही राजस्व की भी हानि होगी। हमारी समस्याओं को विचारधीन रखते हुए इसमें कुछ बदलाव करने जाने की जरूरत है।
मूलतः जीएसटी पास होने से पहले काँग्रेस की तीन बहुत महत्वपूर्ण मांगे थी :-
- भारतीय राष्ट्रिए कांग्रेस चाहती है कि सरकार जीएसटी की दर की अधिकतम सीमा 20 प्रतिशत तय कर दे, और इस दर को संविधान संशोधन में शामिल कर दे, परंतु मोजूड़ा एनडीए सरकार ने इसपर कोई ध्यान नहीं दिया।
- हम इसके अलावा सरकार द्वारा प्रस्तावित एक प्रतिशत अतिरिक्त कर को भी हटवाना चाहते है, जो वस्तुओं को राज्यों की सीमा से आर-पार लाने या ले जाने पर देना होगा, इस प्रस्ताव का उद्देश्य था कि उन राज्यों को भी मुआवज़ा मिल सके, जो उत्पादन पर ज़्यादा ध्यान देते हैं।
- कांग्रेस की तीसरी बड़ी मांग है कि वित्तमंत्री उस परिषद के अधिकारों को बढ़ा दें, जो राज्यों के बीच राजस्व बंटवारे के विवादों को सुलझाने के लिए बनाई जाएगी।
एनडीए सरकार कांग्रेस द्वारा सुझाए गए इन बदलावों पर कोई कदम ना उठाने की जैसे कसम खा चुकी है। अमेरिका की नकल करते हुए भारत में इस तरह के प्रयोग का सफल होने के चान्स कम है क्योंकि वहां 90 प्रतिशत नागरिक करदाता है। जीएसटी लागू हो, लेकिन टैक्स वाजिब रखे जाएं। अननेचुरल टैक्स से व्यापार और राजस्व दोनों को नुकसान पहुंचता है। हम कहते है कि ‘अच्छाई और बुराई’तो जीएसटी के ब्यौरे में होगी लेकिन जीएसटी परिषद के फैसले के बारे में कोई पूर्वाग्रह नहीं रखना चाहते।
चूंकि बहुत सारा ब्यौरा अभी आना है इसलिए जीएसटी की यात्रा शुरू होते ही केंद्र सरकार द्वारा ‘खुद ही अपनी पीठ थपथपाने’मे कहुँगा अभी आगे तो बहुत कुछ किया जाना बाकी है। हमने सिर्फ जीएसटी प्रावधान लागू करने वाले विधेयक को पारित किया है, पर,‘हमने इसे लागू करने की कोई कर प्रणाली अभी पारित नहीं की है. इसलिए जब तक चीजों पर फैसला नहीं हो जाता मुझे कोई व्याख्या नहीं करनी चाहिए’
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