भारतीय राष्ट्रिय काँग्रेस के 133 वर्ष और वर्तमान अध्यक्ष श्री राहुल गांधी जी ।
कांग्रेस
की स्थापना ब्रिटिश राज में 28 दिसंबर 1885 में हुई थी । इसके संस्थापकों में ए ओ ह्यूम (थियिसोफिकल
सोसाइटी के प्रमुख सदस्य), दादा भाई नौरोजी और दिनशा वाचा शामिल थे। 19 वी सदी के आखिर में और शुरूआती से
लेकर मध्य 20वी सदी में, कांग्रेस भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम में, अपने 1.5 करोड़ से अधिक सदस्यों और 7
करोड़ से अधिक प्रतिभागियों के साथ, ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के विरोध में
एक केन्द्रीय भागीदार बनी।
1947 में आजादी के बाद, कांग्रेस भारत की प्रमुख राजनीतिक पार्टी
बन गई। आज़ादी से लेकर 2017 तक, 16 आम चुनावों में से, कांग्रेस ने 6 में पूर्ण बहुमत जीता
हैं और 4 में सत्तारूढ़ गठबंधन का नेतृत्व किया। अतः, कुल 49
वर्षों तक वह केन्द्र सरकार का हिस्सा रही। भारत में, कांग्रेस के सात प्रधानमंत्री रह चुके हैं। पहले जवाहरलाल नेहरू (1947-1965) थे और हाल ही में मनमोहन सिंह (2004-2014) थे। 2014 के आम चुनाव में, कांग्रेस
ने आज़ादी से अब तक का सबसे ख़राब आम चुनावी प्रदर्शन किया और 543 सदस्यीय लोक सभा में केवल 44 सीट जीती।
स्वतन्त्रता संग्राम
स्थापना
काँग्रेस
की स्थापना के समय सन् 1885 का चित्र
भारतीय राष्ट्रीय काँग्रेस की स्थापना 72 प्रतिनिधियों की उपस्थिति के साथ 28 दिसम्बर 1885 को बॉम्बे के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में हुई थी। इसके संस्थापक
महासचिव (जनरल सेक्रेटरी) ए ओ ह्यूम थे जिन्होंने कलकत्ते के व्योमेश चन्द्र बनर्जी को अध्यक्ष नियुक्त किया था। अपने
शुरुआती दिनों में काँग्रेस का दृष्टिकोण एक कुलीन वर्ग की संस्था का था। इसके
शुरुआती सदस्य मुख्य रूप से बॉम्बे और मद्रास प्रेसीडेंसी से लिये गये थे।
काँग्रेस में स्वराज का लक्ष्य सबसे पहले बाल गंगाधर तिलक ने अपनाया था।
प्रारम्भिक वर्ष
1907 में काँग्रेस में दो दल बन चुके थे -
गरम दल एवं नरम दल। गरम दल का नेतृत्व बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय एवं बिपिन चंद्र पाल (जिन्हें लाल-बाल-पाल भी कहा जाता है) कर रहे थे। नरम दल का नेतृत्व गोपाल कृष्ण गोखले, फिरोजशाह मेहता एवं दादा भाई नौरोजी कर रहे थे। गरम दल पूर्ण स्वराज की माँग कर रहा था परन्तु नरम दल
ब्रिटिश राज में स्वशासन चाहता था। प्रथम विश्व युद्ध के छिड़ने के बाद सन् 1916 की लखनऊ बैठक में दोनों दल फिर एक हो
गये और होम रूल आंदोलन की शुरुआत हुई जिसके तहत ब्रिटिश राज में भारत के लिये अधिराजकिय पद (अर्थात डोमिनियन स्टेटस) की माँग की गयी।
कांग्रेस एक जन आंदोलन के रूप में
परन्तु 1915 में गाँधी जी के भारत आगमन के साथ काँग्रेस में बहुत बड़ा बदलाव आया। चम्पारन
एवं खेड़ा में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम को जन समर्थन से अपनी पहली सफलता मिली। 1919
में जालियाँवाला बाग हत्याकांड के पश्चात गान्धी काँग्रेस के महासचिव बने। उनके मार्गदर्शन में
काँग्रेस कुलीन वर्गीय संस्था से बदलकर एक जनसमुदाय संस्था बन गयी। तत्पश्चात्
राष्ट्रीय नेताओं की एक नयी पीढ़ी आयी जिसमें सरदार वल्लभभाई
पटेल, जवाहरलाल नेहरू,
डॉक्टर राजेन्द्र प्रसाद, महादेव देसाई एवं सुभाष चंद्र बोस आदि शामिल थे। गान्धी के नेतृत्व में प्रदेश काँग्रेस कमेटियों का
निर्माण हुआ, काँग्रेस में सभी पदों के लिये चुनाव की शुरुआत हुई एवं
कार्यवाहियों के लिये भारतीय भाषाओं का प्रयोग शुरू हुआ। काँग्रेस ने कई प्रान्तों
में सामाजिक समस्याओं को हटाने के प्रयत्न किये जिनमें छुआछूत, पर्दाप्रथा एवं मद्यपान आदि शामिल थे।
राष्ट्रव्यापी आंदोलन शुरू करने के लिए कांग्रेस को धन की कमी का
सामना करना पड़ता था। गांधीजी ने एक करोड़ रुपये से अधिक का धन जमा किया और इसे बाल गंगाधर तिलक के स्मरणार्थ तिलक स्वराज कोष का नाम दिया। 4 आना का नाममात्र सदस्यता
शुल्क भी शुरू किया गया था।
स्वतन्त्र भारत
1947 में भारत की स्वतन्त्रता के बाद से
भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस भारत के मुख्य राजनैतिक दलों में से एक रही है। इस दल
के कई प्रमुख नेता भारत के प्रधानमन्त्री रह चुके हैं। जवाहरलाल नेहरू, लाल बहादुर
शास्त्री, नेहरू की पुत्री इन्दिरा गान्धी एवं उनके नाती राजीव गान्धी इसी दल से थे। राजीव गांधी के बाद सीताराम केसरी कांग्रेस के
अध्यक्ष बने जिन्हे सोनिया गांधी के समर्थकों ने निकाला तथा सोनिया को हाईकमान
बनाया, इनके कार्यकाल मे काँग्रेस 10 वर्षों
तक सत्ता मे रही और भारतीय अर्थव्यवस्था के जनक श्रीमान मनमोहन सिंह जी भारत के प्रधान
मंत्री रहे । अब राजीव गान्धी की पत्नी सोनिया
गान्धी 19 वर्ष तक कांग्रेस की अध्यक्ष होने के बाद अब उन्ही के पुत्र जो अपने सरल स्वभाव के लिए जाने जाते हैं श्रीमान राहुल गांधी वर्तमान काँग्रेस के अध्यक्ष बने हैं । इस समय काँग्रेस अपने इतिहास के सबसे खराब दौर से गुजर रही है आप इस
दौर की तुलना 1919 वाली काँग्रेस से कर सकते हैं । क्यूँ की गांधी जी के महासचिव बनने
से पहले काँग्रेस की कुछ एसी ही हालत थी । जिस तरीके से गांधी जी ने काँग्रेस को संभाला
था उसी तरीके से अब राहुल गांधी जी के कंधों पर ज़िम्मेदारी आ गयी है । महात्मा गांधी
जी ने अंग्रेजों को भारत से भगाया था और राहुल जी पर सांप्रदायिक ताकतों को भागने की
ज़िम्मेदारी आ गयी है ।
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